Sant Ravidas- जन्म गौड़ है ,कर्म प्रधान

                         जन्म गौड़  है ,कर्म प्रधान                            
       

             कृष्ण मंदिर के मुख्य पुजारी बाबा प्रतिदिन ब्रम्हमुहुर्त में गंगा स्नान करते ,भगवान का भजन करते और दिनभर मंदिर में साफ -सफाई किया करते थे। उनके मन में छुवाछूत की बिमारी इसतरह घर कर गयी थी कि वे प्यासा रह सकते थे ,लेकिन बिना जात -पात पूछे किसी के हाँथ का पानी नही पीते थे। उनका अटल विशवास था कि यदि कोई अछूत मंदिर में प्रवेश करेगा तो मंदिर की पवित्रता नष्ट हो जाएगी।
             मंदिर के पास ही रास्ते में एक झोपड़ी में एक मोची रहता था जो चमड़े के जूते -चप्पल सिलकर अपना तथा अपने परिवार का पेट पालता था। पुजारी बाबा कभी -कभार बाजार से लौटते वक्त मोची की झोपड़ी के पास से गुजरने के बाद आकर स्नान करते ,टीका लगाते तब कहीं जा कर उनके मन को शांति मिलती थी।
            एक बार पुजारी बाबा बाजार से लौट रहे थे। अचानक काले बदल घिर आये ;और पलक झपकते ही बूंदो की जगह पटा पट ओला गिरने लगा। मंदिर दूर था। ओले की चोट से पुजारी बाबा घायल हो गये। आस -पास बचाव का कोई साधन नहीं था। आसमान से बरसते ओले रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। पुजारी बाबा बेसुध होकर गिर पड़े। अचानक झोपड़ी में से वही मोची एक हाँथ में चमड़े का टुकड़ा लेकर दौड़ पड़ा। पुजारी बाबा के शरीर को उस टुकड़े से ढक दिया और स्वयं ओले की चोट सहता हुआ बाबा को अपनी झोपड़ी में लाया और उनका उपचार किया। बाबा अपना पहले का आचरण याद कर बहुत शर्मिंदा हुये। दूसरे दिन से मंदिर में सभी को प्रवेश करने की आज्ञा मिल गयी। बाबा ने मोची के चरणों में अपना सर रख दिया। उक्त मोची आगे चलकर संत रैदास के नाम से जगत में प्रसिद्ध हुये।
             शिक्षा :जात -पात का ढकोसला मनुस्य में अहंकार और स्वार्थ को जन्म देता है। सबसे बड़ी जात मानवता की सेवा है। स्वयं भगवान अपने भक्तों में जाति के आधार पर नहीं बल्कि सच्ची भक्ति और नेक कर्म के आधार पर अपनी कृपा प्रदान करते हैं।      

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