little saava. A brave Girl, A heart touching motivational story in hindi

नन्ही सावा
  एक बहादुर लड़की 
 
               कथा प्राचीन काल की है। नागचौरी नामक गांव में नागवंशी समुदाय के लोग अमन -चैन से अपना जीवन यापन करते थे। यदि उन्हें कोई गम था,तो सिर्फ एक अभिशाप कि कभी कभार विशाल गरुड़ {एक पक्षी }किसी न किसी निवासी पर आक्रमण करके उसे मारकर खा जाता था। उसी गांव में एक अनाथ लड़की सावा अपने चाचा -चाची के पास रहती थी। उसके माता -पिता को भी गरुड़ ने मारकर खा लिया था। जीवन की इतनी हानि देखकर नागवंशियो ने गरुड़ से समझौता कर लिया था ;जिसके मुताबिक प्रत्येक माह की शुरुआत में गांव के एक सदस्य को गरुड़ का आहार बनने के लिए काली पहाड़ी पर जाना पड़ता था।
                नन्ही सावा को चाचा -चाची के घर काफी मुसीबत का सामना करना पड़ता था। घर का सारा काम करने के बाद भी उसे डांट और मार पड़ती और भूखी प्यासी रहना पड़ता। रात के एकांत में अपने माता-पिता को याद करके सावा खूब रोती थी। माह की शुरुआत थी और चाचा -चाची के घर से गरुड़ के भोजन हेतु किसी को भेजने की बारी आ पहुंची। चाचा -चाची ने सावा को गरुड़ के आहार हेतु भेज दिया। घर से निकलते वक्त भय से सावा का बुरा हाल था। थर -थर काँप रही थी ,चेहरा पीला पड़ गया था। जाना तो था ही ,सो जी कड़ा करके सावा काली पहाड़ी की ओर चल पड़ी। जंगल के रास्ते में बेला ,चमेली, चंपा और गुलाब के फूल खिले थे। नन्ही सावा ने खूब सारा फूल तोड़कर लता की रस्सी से बांध लिया। आगे जाने पर रास्ते में मीठे फलों के बाग़ दिखे। सावा ने अनेक रसीले फल तोड़कर फ्रॉक की जेब में रख लिया।
                 दोपहर होते-होते सावा काली पहाड़ी पर पहुँच गयी। गरुड़ के आने का समय हो रहा था। सावा भय से आँखे बंद करके चुपचाप पहाड़ी की समतल शिला पर लेट गयी। अचानक भयानक आवाज करता गरुड़ आ पहुँचा। भूखा गरुड़ अपनी विशाल चोंच में सावा के दोनों पैरों को दबोच कर मांस भक्षण करने लगा। सावा असहय पीड़ा से तड़प उठी ,लेकिन उफ़ न किया। न छटपटाई न ही चीखी। गरुड़ को आश्चर्य हो रहा था;क्योंकि इसके पहले उसका शिकार चीखता था ,बचने की कोशिश करता था लेकिन आज तो अलग ही आलम था। माँस की बदबू की जगह फूलों की सुगंध आ रही थी। स्वादिष्ट फलों का रस मांस के साथ मिलकर गरुड़ को आलौकिक आनंद प्रदान कर रहा था।
                आधा शरीर खाने के बाद गरुड़ ने देखा कि नन्ही बालिका अभी जीवित है। गरुड़ ने पूछा ,"तू चीख नहीं रही ,तुम्हारे शरीर से फूलों की खुशबू और माँस से फलों के स्वाद का सुख मिल रहा है मैं आज बहुत खुश हूँ,तू कुछ मांग ले। "
                सावा धीमी आवाज में बोली ,"गरुड़ देव यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो आज के बाद मेरे गांव के किसी सदस्य को अपना आहार न बनाये। " गरुड़ बोला ,"तू बड़ी परोपकारी लड़की है अपने लिए कुछ नहीं माँगा ,अपने गांव का भला चाहती हो। कुछ और मांग लो। "  
                  सावा बोली ,"यदि आप प्रसन्न है ,तो मेरे गांव के जितने लोगों को आपने अपना भोजन बनाया है, उन्हें जीवित कर दीजिये। " 
              गरुड़ ने अमृत के घड़े से अमृत ले कर पास ही पड़े हड्डियों के ढेर के ऊपर छिड़क दिया। पलक झपकते ही हड्डियों में हलचल हुई और वे मानव की आकृति ग्रहण करने लगी। उन्ही लोगो में सावा के माता-पिता भी जीवित हो उठे। गरुड़ ने मुस्कुराकर सावा के ऊपर भी अमृत छिड़का। सावा पहले की तरह स्वस्थ होकर अपने माता -पिता के गले लग गयी। सभी ने गरुड़ की जय -जयकार की। गरुड़ बोला ,"मेरी जय जयकार करने की बजाय तुम सब लोग इस नन्ही लड़की की जय -जयकार करो। इसने अपनी सूझबूझ और चतुराई से तुम सबको जीवन -दान दिलाया है। " 
               भीड़ ने सावा की जय -जयकार की। सभी लोग हँसते -मुस्कुराते सावा के गुण गाते अपने गांव नागचौरी की ओर दौड़ पड़े। 
               इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि साहस ही ऐसा यन्त्र है जिससे हम बड़ी से बड़ी परेशानी का सामना आसानी से कर सकते है। तथा इंसान साहस से ही मौत के मुँह से भी बाहर आ सकता है।                                                                                     

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