Baba Nirliptanand. interesting story in hindi
किसी गांव के छोर पर पीपल के नीचे एक महात्मा जी ने अपना दंड और कमंडल रखा और चेला मन्साराम से कहा ,"वत्स शाम होने वाली है,मैं तो गांव में प्रवेश नहीं करुँगा तू लपककर जा और किसी दुकान से सौदा खरीद ला तो ,भगवान का भोग लगे और प्रसाद पाया जाये। " चेला गांव की ओर चल पड़ा। एक किराने की दुकान पर आटा ,दाल ,नमक और आलू आदि खरीद कर चलने लगा तो ,दुकानदार से न रहा गया,पूछ पड़ा ,"महात्मा जी ,कहाँ के रहने वाले हो। "चेला मुस्कुराया ,"रमता जोगी बहता पानी। बच्चा !साधु का कौन सा घर कौन सा परिवार ?जहाँ वसई तँह सुन्दर देसू। "
दुकानदार प्रभावित हुआ ,बोला ,"महात्मा जी आज मेरे गरीबखाने पर आसन लगे। "चेला बोला ,"राम !राम !मैं भला गांव में कैसे रह सकता हूँ ?गुरुजी का सच्चा कनफुकवा चेला हूँ। मेरे गुरु स्वामी निर्लिप्तानन्द जी त्रिकालदर्शी हैं। गांव के छोर पर मेरी बाट जोह रहे हैं, मैं चला। "दुकानदार सौ -सौ की २ नोट लिया और चेले के पीछे महात्मा जी का दर्शन पाने के लिये दुकान पर बेटे को बैठा ,सरपट दौड़ा पीपल के नीचे महात्मा जी समाधि लगाये बैठे थे। चेले ने दुकानदार को शांत खड़ा रहने का इसारा किया। थोड़ी देर में महात्मा जी ने ,"राधे कृष्ण,हरे मुरारी "की गर्जना के साथ आँखे खोली। चेले के पास खड़े अजनबी को मर्मभेदी दृष्टि से देखते हुये महात्मा जी बोले ,"कौन हो बच्चा !"दुकानदार बोला कुछ नही ,लपककर महात्मा जी के चरणों में दंडवत लोट गया। जब आशीर्वाद पाकर उठा तो ,झट थैले में से निकालकर 100 के दो नोट महात्मा जी के चरणों में रख दिया। महात्मा जी की आँखों में खून उतर आया। चिमटा उठा कर बोले ,"मूर्ख !मुझे माया के जाल में मत फॅसा। लक्ष्मी चंचला होती हैं। चेला मंसाराम घिघियाया। गुरुजी बेचारे को आशिर्वाद दे दीजिये। बाबा ने दोनों नोटों को मुट्ठी में बंद किया। दुसरे हाथ से झोले में से जंतर निकला और बंद मुट्ठी के चारो ओर फिराया। मुट्ठी खोल दी चमत्कार हो गया था। मुट्ठी में से सौ -सौ की चार नोटे गिर पड़ी। दुकानदार की आँखे आश्चर्य से फैल गयी। चेला दुकानदार से बोला ,"देखा ,गुरुजी का चमत्कार !आशीर्वाद ले और हा किसी से कुछ न बताना। "
दुकानदार चारो नोटों को समेटा और चेले से बोला ,"क्या महात्मा जी और भी नोट दुगनी कर सकते हैं ?
चेला बोला ,"गुरुजी ने घोर तपस्या से अनेक सिद्धियाँ पायी हैं। जा ,जितनी मर्जी करे उतना रुपया ला और दुगना लेकर जा।
गुरु चेले का पैर छूकर दूकानदार ,घर की ओर सरपट भागा।
दुकान के सामने ही उसकी पत्नी मिल गयी। दुकानदार ने जब उसे सारी बात बतायी तो उसकी पत्नी खुशी से चहक उठी। दोनों मिलकर घर की सारी नोटे गिनने लगे। कुल नगद 835रुपये। पैतिस छोड़ो सीधा 800 ही दुगना करा लिया जाये। पत्नी ने कहा ,"अगर तुम कहो तो मैं अपनी पड़ोसन से एक दिन के लिये कुछ और पैसे मांग लूँ। "दुकानदार बोला ,"मांग लो ,लेकिन महात्मा जी वाली बात हरगिज ना बताना। "दुकानदार की पत्नी पड़ोसन के घर लपकी। दोनों की मुलाकात दरवाजे पर ही हो गयी। पड़ोसन बोली ,"बड़ी लम्बी उमर है दीदी मैं अभी तुमसे ही मिलने आ रही थी। "पड़ोसन ने जब एक दिन के करार पर कुछ रुपयों की मांग की ,तो दोनों बहुत देर तक राज छिपाये न रह सकीं। क्रमशः तीन-चार और पड़ोसनों को भी नोट दुगना करने वाले महात्मा जी की बात पता हो गयी। गांव की औरतों की एक दूसरी टोली को जब यह बात पता चली तो उन्होंने कहा ,यह सब अफवाह है, "नोटे नकली होंगी ,बाबा लोग धोखा देते हैं।"आदि ,महात्मा से प्रभावित नोट दुगना कराने वाली टोली गांव के बाहर पीपल तले महात्मा जी के पास पहुंची। महात्मा जी आँख बंद किये पद्मासन लगाये बैठे थे। चेला ने सभी औरतों को शांत रहने का इशारा किया। महात्मा जी ने आँखे खोली। चेले ने गुरुजी के कान में कुछ कहा। महात्मा जी के संकेत पर चेला झोले में से एक खोपड़ी निकला और सभी औरतों को क्रम से अपना रुपया खोपड़ी पर रखने का इशारा किया और क्रम से किसने कितना रुपया रखा ,याद रखने के लिये कह दिया। कुल नोट गिना रुपया 1800 /-को खोपड़ी सहित झोले में डाल दिया। महात्मा जी ने चिमटा बजाया मंत्र पढ़ा और झोले के चारो ओर जंतर घुमाया। एक घंटे के बाद चेले ने झोला उलट दिया। खोपड़ी गायब थी। सौ की नोटों का एक ढेर बिखर गया। नोट गिनी गयी,कुल रुपया 3600 /-चेले ने औरतों से कहा की जिसने जितना रुपया झोले में रखा था उसका ठीक दोगुना उठा ले। सभी औरतें आश्चर्य मिश्रित आनंद से चहक रहीं थीं।
एक औरत से रहा नही गया। उसने महात्मा जी का चरण पकड़ लिया और बोली ,"भगवन क्या आप सोने-चांदी को भी दुगना कर सकते हैं। "महात्मा ने निर्विकार भाव से कहा ,"कागज की नोटों को तो कुछ घंटे में ही दुगना किया जा सकता है ,लेकिन कीमती धातुओं के लिये पूरी रात पूजा करनी पड़ेगी। महात्मा का चरण -स्पर्श कर दुगना धन ,दसगुना हसरत और बीस गुना विश्वास लिये सभी औरतें गांव लौटीं। उनके कानों में महात्मा जी की घन -गरज अलख निरंजन !लक्ष्मी चंचला होती हैं की आवाज गूंज रही थी। पूरे गांव में धन और गहना दुगना कराने की होड़ मच गयी जिसे देखो वही अपने रुपये पैसे और गहने की पोटली लिए पीपल वाले महात्मा जी की ओर भगा जा रहा था।
महात्मा जी की देख -रेख में चेला ने कुदाल से एक बड़ा गड्ढ़ा खोदा पूरे गांव की गठरियाँ उसमे डाल दी गयीं और मिट्टी से ढक कर उसके ऊपर लक्ष्मी -गणेश की मूर्ति रख दी गयी। पास में ही महात्मा जी ने सभी गांव वालों से जागरण करके कीर्तन -भजन करने का आदेश दिया। चेला मंसाराम ने सभी को बताया कि रातभर गुरुजी पूजा करेंगे ब्रह्ममुहर्त में हवन करेंगे और सूरज की पहली किरण के आने पर गड्ढा खोदा जायेगा और जिसने जितना गहना और रुपया रखा है ,ठीक उसका दोगुना हो जायेगा।
गांव वाले पूरे जोश से सारी रात कीर्तन भजन करते रहे ब्रम्हमुहर्त में गुरुजी दिशा- मैदान के लिये तालाब की ओर निकल गये। उनके पीछे चेला भी झोला सम्भाले निकल गया।
सूरज की स्वर्णिम किरणों में सारा गांव जगमगा उठा कीर्तन समाप्त हो गया। सभी लोग गड्ढ़े की ओर लपके। गुरु -चेला दिख नहीं रहे थे। सबको अपने दुगना हुये धन की फ़िक्र थी। गड्ढ़ा खोदा जाने लगा एक -एक करके पोटलियाँ निकाली जाने लगी। पोटलियों की पहचान कराके उसके स्वामी को सौंपी जाने लगीं। मगर यह क्या ,जो ,भी पोटली खोलता उसमें ईट -पत्थर और कागज के टुकड़े निकलने लगे। कोहराम मचा हुआ था। गुरु -चेले की खोज होने लगी। महात्मा ने सच कहा था "लक्ष्मी चंचला होती हैं। "
लालच बुरी बला है। बिना परिश्रम अधिक लाभ की
कामना मनुष्य को अपूरणीय क्षति पहुंचाती है।
Very nice story
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